वोट की राजनीती में शहीदों को तो अलग ही रखो - शहीद के नाम की उपेक्षा क्यों ==-पिछले दिनों उत्तरप्रदेश के दंगों में मारे गए लोगों को शहीद मानने की मांग पर ऐसा लगा जैसे देश के शहीदों की आत्मा को कचोटा जा रहा है जहाँ एक तरफ उत्तरप्रदेश के एक मंत्री ने दंगों में मारे गये लोगों के घर जाने से इसलिए इनकार कर दिया क्यों कि वे दंगे में शामिल थे जबकि कांग्रेस महासचिव सोनिया गाँधी के साथ ही जब कांग्रेस के बड़े नेता राशिद अल्वी ने भी दंगों में मारे गये लोगों को शहीद का दर्ज़ा देने की मांग की देश के जवान शहीदों की जगह दंगाई अथवा उसमे मरे लोगों को शहीद का दर्ज़ा देने की मांग कितनी अजीब लगती है जो लोग दंगों में मरे वो दोषी थे अथवा निर्दोष यह जांच का विषय है लेकिन दंगा पीड़ित को शहीद बताना कितना शर्मनाक और शहीद का उपहास करने जैसा है कांग्रेस ही नहीं विभिन्न राजनितिक दल भी वोट की खातिर शहीद की आत्मा को घायल करने से पीछे रहते कभी किसी को कभी किसी को शहीद का दर्जा देने की मांग पहले भी उठती रही है लेकिन दंगों में मरे लोगों को शहीद का दर्जा देने की मांग पहली बार सुनी गयी यह सुनने में अजीब और दुखदाई ही नहीं लगता बल्कि ऐसा लगता है जैसे देश के उन शहीद सैनिकों का उपहास उड़ाया जा रहा हो जो देश के लिए कुर्बान हो गए देश में अनेक लोग देश हित में अपनी जान देते हैं कलम के अनेक सिपाही पत्रकार भी अपने कर्तव्य की बलिवेदी पर बलिदान हो चुके हैं उनको कोई शहीद नहीं मानता अनेक धरती पुत्र किसान भी विभिन्न कारणों से अपनी जान गवां चुके हैं और भी अनेक व्यक्ति हैं जो अनेकमहान कामों के लिए अपनी जान दे चुके लेकिन शहीद के नाम का बटवारा ऐसे पहले कभी नहीं हुआ जैसा आज देखने और सुनने को मिल रहा है वोटों के लिए शहीद के नाम का वर्गीकरण करना निंदनीय और अक्षम्य है
शहीद के नाम का बटवारा